बिना हथियार, लढने की कवायद भेजे गए सेनापती, सेना भी नदारद
नागपुर: पूर्व ऊर्जा मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राज्य महासचिव चंद्रशेखर बावनकुले को नागपुर स्नातक निर्वाचन क्षेत्र के लिए राज्य के प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया था। लेकिन इससे पहले कि वह कुछ कर पाते, उनके कवच और शस्त्र उतार दिए गए। इसे स्नातक निर्वाचन क्षेत्र के उम्मीदवार संदीप जोशी की हार के कारणों में से एक भी माना जा रहा है। हार की कारणो की मिमांसा मे कई कारक सामने आ रहे हैं। कार्यकर्ताओं के अनुसार, यह उनमें से एक हो सकता है।
राजनीति में जिला परिषद सदस्य, तत्कालीन विधायक और ऊर्जा राज्य मंत्री के रूप में उन्हें व्यापक अनुभव है। वे नागपुर, भंडारा और वर्धा जिलों के पालक मंत्री भी रह चुके हैं। न केवल पद ग्रहण बल्कि उन पदों को अपनी सतर्कता और समर्पण के बुते अपने लंबे, विशाल अनुभव और पूर्वी विदर्भ के सभी जिलों में उनके संपर्क के कारण, श्रेष्ठीयो को भरोसा था कि वह निश्चित रूप से पिछले 58 वर्षों से भाजपा के गढ़ को बनाए रखेंगे। लेकिन ऐसा हों न सका और भाजपा ने आखिरकार अपना गढ़ खो दिया।
बावनकुले ने इमानदारी से किले के बचाव के लिए लड़ाई लड़ी। लेकिन 2019 विधानसभा के लिए उनको उम्मीदवारी न देने से कार्यकर्ता नाराज थे, इसलिए वास्तव में इस चुनाव को लड़ाई के रूप में लड़ा गया इस बारे में कई जानकार साशंक है। क्योंकि पार्टी ने उनको चुनाव प्रमुख के रूप में युद्ध के मैदान में भेजा, लेकिन इससे पहले ही उनके कवच और शस्त्र हटा दिए गए थे। तो वे निहत्थे कैसे लड़ सकते थे? ऐसा उनके कार्यकर्ता एक निजी चर्चा के दौरान कह रहे हैं। कुछ कार्यकर्ताओं की राय है कि अगर बावनकुले आज भी विधायक होते तो इस चुनाव का नतीजा कुछ और होता। इसलिए, पार्टी नेताओं को इस सवाल का जवाब तलाशना आवश्यक है कि क्या भाजपा को बावनकुले के कवच को बरकरार रखना जरूरी है।