कलेक्टर, पुलिस आयुक्त सत्तापक्ष के साथ : मुंडे का समर्थन वापस लिया
नागपुर:- प्रशासन में चार्टर्ड अधिकारी की छवि जनता मे ज्यादा घुलमिल वाली नहीं लेकिन जनहित में काम करनेवाली होती है, राजनीति से उनका कोई सीधा संबंध नहीं होता है। लेकिन आजकल यह सब राजनीति का हिस्सा बन रहे है। अक्सर यह सुना जाता है कि आयुक्त को फलाने पार्टी द्वारा भेजा है, पुलिस आयुक्त को एक फलाने पार्टी द्वारा भेजा है। आदी आदी, स्मार्ट सिटी के सीईओ के रूप में परसो के घटनाक्रम ने अधिकारियों के बीच राजनीतिक विभाजन को स्पष्ट रेखांकित करवा दिया।
नगर आयुक्त ने नागपुर स्मार्ट एंड सस्टेनेबल सिटी डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के खुद सीईओ बन स्मार्ट सिटी चलाने की कोशिश की। मेयर द्वारा उनका कड़े विरोध के बाद, आयुक्त और सत्तारूढ़ पार्टी के बीच जारी संघर्ष, जो पहले से ही चल रहा था, तेज हो गया। पिछले कुछ महीनों में विभिन्न आरोप लगाए गए हैं।
परसो तक, कमिश्नर कह रहे थे कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के चेयरमैन प्रवीण परदेशी ने उन्हें सीईओ पद संभालने के लिए फोन पर बताया था। पर परसो की बैठक में, परदेसीने जोर देकर कहा कि “आप स्मार्ट सिटी के सीईओ नहीं थे”। वहा मुंढे अकेले पड़ गए, भरी सभा में उनपर कठिन घड़ी आ गई। सभा में सब कानूनन जो लिखा है वह किया जाये इसपर सहमत थे पर मुंढे अकेले क्यों पड़े? गहराई से देखें तो इससे कुछ तथ्य सामने आए।
निगम में बीजेपी सत्ता में है और जब से मुंढे कमिश्नर के रूप में आए, उन्होंने सत्ता पक्ष के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया। उन्होंने कई परियोजनाओं को रोक दिया। धन की कमी का कारण बताते स्वीकृत कार्य रुक गए। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने स्मार्ट सिटी के सीईओ का पद ईसी के लिए हथिया लिया था। राज्य में सत्ताधारी दल शिवसेना द्वारा हर बार कमिश्नर द्वारा किए गए कार्यों पर ध्यान दिया गया। फिर चाहे नदियों की सफाई मामला हो, या कोरोना लड़ाई में कोविद केयर सेंटर का निर्माण। पर्यावरण मंत्री ठाकरे ने हमेशा ट्विटर पर कमिश्नर की प्रशंसा की।
स्मार्ट सिटी के अध्यक्ष प्रवीण परदेशी को भाजपा का करीबी कहा जाता है। कमिश्नर को शिवसेना हलकों से लगातार समर्थन मिल रहा है। परसो की बैठक में भी, शिवसेना के एकमात्र नगरसेवक मंगला गवरे ने मुंढे के समर्थन में बात की थी। बैठक में, परदेशी ने नगरपालिका अधिकारियों कि साईड मे हामी भरी। इसलिए, कहा जा रहा है कि परदेशी प्रशासन में अधिकारियों होते हुए भी भाजपा के करीबी होने से उन्होंने मुंडे विरोधी रुख अपनाया।
शिवसेना ने परदेशी को मुंबई नगर आयुक्त के पद से हटा दिया था। यह भी एक वजह चर्चा में है। इसके अलावा जिला कलेक्टर रविंद्र ठाकरे और पुलिस आयुक्त डॉ भूषण कुमार उपाध्याय भी निदेशक के रूप में बैठक में शामिल हुए। दोनों चार्टर्ड ऑफिसर होकर भी उन्होंने बहुत सतर्कता और अप्रत्यक्ष रूप से मुंढे का विरोध किया। इसके पीछे भी दलगत राजनीति की वजह कही जा रही है।