स्कूल लगे ही नहीं , फिर भी एक्टिविटी फीस के नाम पर पैरेंट्स की जेब ढीली करने में लगे स्कूल
पैरेंट्स की डिमांड है कि एजुकेशन डिपार्टमेंट स्कूलों पर कार्रवाई करें, लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं है। कोरोना महामारी के चलते ई-लर्निंग करवाई जा रही है इसके बावजूद भी प्राइवेट स्कूल मनमानी फीस वसूल कर बच्चों के पैरेंट्स की जेब ढीली करने में लगे हैं।
नागपुर में जो हालात देखने को मिल रहे है, उसके पीछे का कारण यह है, कि महाराष्ट्र एजुकेशन इंस्टीट्यूशंस (रेगुलेशन ऑफ फीस) एक्ट 2011 के प्रावधान के तहत राज्य की सरकार को स्कूलों की फीस तय करने के अधिकार नहीं है।अपनी फीस स्कूल खुद ही तय करेंगे।यही नियम स्कूलों के लिए ढाल का काम कर रहा है।
इसी एजेंडे के तहत मंगलवार को शहर के दत्तवाड़ी स्थित जिंदल पब्लिक स्कूल में पैरेंट्स ने फीस का विरोध किया। स्कूल, पैरेंट्स को एक्टिविटी फीस जमा करने के लिए कह रहा है, नहीं जमा करने पर स्टूडेंट्स को परीक्षा से वंचित रखने की चेतावनी दी गई है।
पैरेंट्स ने स्कूल मैनेजमेंट के इसी रुख के खिलाफ लिखित में अपना विरोध व्यक्त किया है।देखा जाए तो यह पहला मामला नहीं है, शहर के अधिकांश जाने माने स्कूलों की स्थिति यही है। स्कूल पैरेंट्स को ट्यूशन फीस, ई-लर्निंग फीस, अमाल्गामेटेड फंड और कई इंस्टॉलमेंट में फीस भरने के लिए कहते हैं। आए दिन शहर के बहुत से स्कूलों के सामने पैरेंट्स के आंदोलन जारी है। इसके पहले भी कई स्तरों पर शिकायतें दर्ज हुई हैं। परन्तु इतनी शिकायतों के बावजूद अब तक शिक्षा विभाग स्कूलों पर नियंत्रण लगाने में नाकाम रहा है।
नियमों में हमारे पास कई प्रकार के अधिकार हैं, जिससे स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। मामले में हमने जांच भी शुरू कर दी है, जिसका परिणाम जल्द ही सबके सामने होगा। – अनिल पारधी, शिक्षा उपसंचालक नागपुर
स्कूलों की मनमानी फीस का मुद्दा हमारे संज्ञान में है, लेकिन न्यायालयीन मामलों के कारण कुछ बंदिशे हैं। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि स्कूल अनाप-शनाप फीस वसूल करेंगे।
पैरेंट्स को राहत देने के लिए स्टेट गवर्नमेंट ने 8 मई 2020 को जीआर जारी किया था।जिसने स्कूलों में फीस वृद्धि पर रोक लगाई।पैरेंट्स को फीस जमा करने के लिए इंस्टॉलमेंट व अन्य प्रकार की राहत देने के आदेश दिए गए। पर कई स्कूलों ने इसके खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के इस जीआर पर रोक लगा दी। हालांकि स्टेट गवर्नमेंट ने इसके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील की। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को दोबारा हाईकोर्ट के सामने ही अपनी दलीलें रखने के आदेश दिए। तभी से फीस के मेटर पर राज्य सरकार बैकफुट पर आ गई है।
अब मामला न्यायालय में विचाराधीन होने के कारण एजुकेशन डिपार्टमेंट भी स्कूल फीस कंट्रोल की दिशा पर वेट एंड वॉच के रोल में है। बस इस हालत का स्कूल लाभ उठा रहे हैं।