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ट्रैफिक व्यवस्था सुचारू रूप से चलाने के लिए हाईकोर्ट ने लगाई विभाग को फटकार

शहर में यातायात नियोजन एक अहम चिंता का विषय बना हुआ है यातायात व्यवस्था अस्त व्यस्त होने के कारण हर दूसरे दिन कोई न कोई नागरिक  दुर्घटनाओं का शिकार हो रहा है।लेकिन पुलिसकर्मी  इन मुद्दों को नजरंदाज किए हुए है।

अवैध हॉकर्स के साथ बहुत से रास्तों व चौराहों पर अवैध पार्किंग के कारण सालों से वाहन चालकों को यातायात में कई तरह की मुसीबतों का सामना करना पड रहा है। छोटे-मोटे वाहनों के साथ ट्रक व बस वालों की मनमर्ज़ी चलती है।जहां रोड़ खाली दिखी वहीं ट्रकों व बसों का पार्किंग अड्डा बन जाता हैं।

ट्रैफिक व्यवस्था सुचारू रूप से चलाने के लिए हाईकोर्ट ने जिस तरह से बुधवार को पुलिस प्रशासन को फटकार लगाई।उसके बाद अब जनता के मन में एक ही प्रश्न उठ रहा है कि क्या सड़कों का ट्रैफिक परिचालन करने के लिए भी अब हाईकोर्ट को खुद को सड़कों पर उतरना होगा। शहर के कई महत्वपूर्ण मुद्दे है जो कि हाईकोर्ट में लंबे समय से अटके है लेकिन यातायात की चरमराती व्यवस्था व पुलिस प्रशासन की बेपरवाही के चलते हाईकोर्ट को विवशतापूर्वक खुद ही संज्ञान लेते हुए मामले को अपने हाथों में लेना पड़ा।

सिग्नल बंद होने पर भी कई वाहन चालक सिग्नल तोड़ के गाड़ियां आगे बढ़ाते रहते हैं।इतना होने पर भी  पुलिस कर्मचारी टस से मस नहीं हुए।चौराहों पर ट्रैफिक नियंत्रित करने के लिए एक पुलिस कर्मी जबकि चालान की कार्रवाई के लिए पूरा काफिला शामिल हो जाता है।कार्रवाई के दौरान कोई भी सिग्नल तोड़े या इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है।

शहर के बहुत सारे परिसरों में फुटपाथ व सड़कों पर अवैध हॉकर्स ने अपनी दूकाने सजा कर कब्ज़ा जमा लिया है।इन अवैध हॉकर्स का इंतजाम मनपा भी अभी तक नहीं कर पायी है। धरमपेठ हो,सीताबर्डी मेन रोड हो या इतवारी,या नंदनवन अधिकांश परिसर में वैध हॉकर्स की आड़ में अवैध हॉकर्स ने सड़कों व फुटपाथ पर अपना रोब जमा लिया है।

महानगर पालिका व पुलिस प्रशासन इन अतिक्रमणकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई होती तो है लेकिन अतिक्रमण दस्ते के गुजरने से पहले ही स्थिति वहीं की वहीं हो जाती है।अतिक्रमणकर्ताओं को इतना साहस प्रशासन के अधिकारियों से मिलता है।एक छोटे दूकानदार की पहचान पुलिस कर्मी से लेकर महानगर पालिका अधिकारी तक होती है।यही कारण है कि अधिकारियों की मिली भगत से शहर में अतिक्रमण बढ़ता ही जा रहा है।

वेस्ट हाईकोर्ट रोड, रामदासपेठ, जरीपटका , इतवारी, मुंजे चौक, की तरह कई परिसरों में यातायात के साथ पार्किंग व्यवस्था को लेकर कोई नियोजन ही नहीं है। अतिक्रमण और पार्किंग से 40 फूट की सड़क भी 4 फूट की बन जाती है।इस स्तिथि में नागरिकों को हर परिसर में लंबे ट्रैफिक जाम की समस्या से जूंझना पड़ता है।तो भी प्रशासन अवैध पार्किंग पर कार्रवाई करने में आना कानी करती है।

आरटीओ का पुलिस प्रशासन और पुलिस प्रशासन का महानगर पालिका से कोई समन्वय नहीं होने पर शहर में सड़क दुर्घटनाए बढ रही है।

पहले साप्ताहिक बाजार हफ्ते में एक दिन लगता था, लेकिन अब साप्ताहिक बाजार के नाम पर हर दिन सड़कों पर सजे हुए सब्जी-भाजी दूकानों ने नागरिकों का सड़क पर चलना मुश्किल कर दिया है।अब सड़कों पर सब्जी मार्केट ही नहीं बल्कि बिरयानी सेन्टर और फास्ट फूड का भी मेला लगा रहता है।

प्रशासन की बेपरवाही के कारण हाई कोर्ट के न्यायाधीश पिछले कुछ माह से स्वयं ऐतिहासिक स्थानों के संरक्षण, सौंदर्यीकरण और यातायात व्यवस्था को सुधारने के लिए सड़कों पर उतरना पड़ रहा है।यदि हाईकोर्ट को ही शहर के विकास और देखरेख पर ध्यान देना है तो अनेक विभाग में हाई पोस्ट पर बैठे अधिकारी को किस काम का वेतन दिया जा रहा यह सवाल जनता पूछ रही है। 

पहले कस्तूरचंद पार्क, फिर जीरो माईल और अब ट्रैफिक व्यवस्था को सुचारू करने के लिए हाईकोर्ट आगे आया। अब शहर की किस प्रॉब्लम को लेकर अधिकारियों को फटकार लगाएगी यह कुछ कहा ही नहीं जा सकता।

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